मन ने मेरे बुने थे सपने
हज़ार
सोचा था बदलूंगी उन्हें
हक़ीकत में एक बार |
दुनिया को बदलना था मुझे
छोड़ना था अपना निशां |
पंख लगा उड़ना था मुझे
छूना था ये आसमां |
सिर्फ आज नहीं कल को भी
अपना बनाना था
अपने कल से बेहतर कुछ करके
दिखाना था |
हिम्मत की कोई कमी न थी
थे रास्तें चलने को अनेक
मेरे पास |
पर तूने मुझे चलने न दिया
मेरे पंखो को रूसर होने न
दिया |
हर क़दम पर थे सवाल खड़े
हर मोड़ पर कुछ नई बाधायें |
तेरी हैवानियत का हूँ मैं
सबूत
मेरे हर ज़ख्म में हैं तेरी
छाप |
तेरे शोषण की वजह मेरी
कमजोरी न थी
तेरी सोच का शिकार बन गयी
हूँ मैं |
अब हर मोड़ पर झिझकती हूं
आगे बढ़ने से लगता है डर
मुझे |
ये तेरी जीत नहीं
मेरी हिम्मत का है इम्तेहां |
हर कसौटी पर खरी उतरूंगी
मैं
न कम समझ मेरी सोच की ताकत
को |
तू जितने ही रूकावट ला खड़ी
कर
मेरी उड़ान उन सबसे उची होगी
|
मैं कटे पंखो से ही उड़
जाउंगी
एक नया रास्ता बना ही लुंगी
|
असीमित है संभावनाए
हर एक है मेरे लिए संभव
हर एक है मेरे लिए संभव |